अपनी शेरों-शायरी के लिए मशहूर मिर्जा गालिब जो जिसने सुना वो उनका दीवाना हो गया। उर्दू शायरी के बादशाह मिर्जा गालिब के आज भी लाखों चाहने वाले हैं।
27 Dec, 2022 10:46 AMनई दिल्ली/टीम डिजिटल। अपनी शेरों-शायरी के लिए मशहूर मिर्जा गालिब जो जिसने सुना वो उनका दीवाना हो गया। उर्दू शायरी के बादशाह मिर्जा गालिब के आज भी लाखों चाहने वाले हैं। उनकी शायरी का हर एक लफ्ज प्यार और मोहब्बत में डूबा हुआ लगता है इसीलिए अपने सुनने वालों को अपना मुरीद बना लेतें हैं।
छोटी सी उम्र में शुरु की शेरो-शायरी
मिर्जा गालिब का पूरा नाम मिर्जा असदुल्लाह बेग खान था। उनका जन्म 27 दिसंबर 1797 को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ। गालिब साहब ने महज 11 साल की उम्र में ही शेरों शायरी लिखने की शुरुआत कर दी थी। गालिब को पत्र लिखने का बहुत शौक था जिसके कारण उन्हें पुरोधी के नाम से भी जाना जाता था। मिर्जा गालिब मुगल साम्राज्य में उर्दू और फारसी के शायर के रूप में मशहूर हुए थे। उनके पिता की मृत्यु के बाद मिर्जा गालिब को पालन पोषण उनके चाचा ने ही किया था। आज इस अमर शायर के जन्मदिन के मौके पर हम उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ यादगार किस्से बताने जा रहे हैं।
नाम के आगे ऐसे लगा मिर्जा
मिर्जा गालिब को दिल्ली के सुल्तान बहादुर शाह जफर-2 ने 1850 में 'दबीर-उल-मुल्क' और 'नज्म-उद-दौला' की उपाधि से नवाजा था। इसके साथ उन्हें 'मिर्जा नोशा' की पदवी से भी सम्मानित किया था, जिसके बाद गालिब के नाम के साथ 'मिर्जा' शब्द जुड़ गया।
जुआ खेलने पर गए जेल
आपको बता दें कि उर्दू के इस मशहूर शायर को एक बार जेल भी जाना पड़ा था, जिसकी वजह उनका जुआ खेलना था। अंग्रेज सरकार में उस समय जुआ खेलने का 200 रुपये जुर्माना और कारावास की सजा हुआ करती थी यह सजा मिर्जा गालिब ने भी काटी थी, जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। जिसके बाद बादशाह बहादुर शाह जफर की सिफारिश पर उनकी बामशक्कत कैद को सामान्य कैद में तब्दील कर दिया गया। मिर्जा गालिब को फिर एक मेडिकल सर्टिफिकेट की मदद से करीब तीन महीने बाद जेल से रिहा करा लिया गया।
खुद को कहते थे आधा मुसलमान
मिर्जा गालिब ने कभी मुसलमान होने के बाद भी रोजा नहीं रखा था क्योंकि वे खुद को आधा मुसलमान कहते थे। मिर्जा गालिब का स्वभाव हमेशा से अलग रहा है।
संतान सुख से वंचित रहे मिर्जा
मिर्जा गालिब की 13 साल की छोटी सी उम्र में उमराव बेगम से शादी हो गई थी। जिससे उन्हें 7 बच्चे हुए लेकिन उनकी कोई भी संतान 15 महीने से ज्यादा जीवित नहीं रह पाई। गालिब की गजलों में उनका यही दर्द झलकता है जिसे सभी महसूस कर सकते हैं। अपनी संतान के जीवित न रहने पर उन्होंने अपनी पत्नी के भतीजे को गोद ले लिया था। दुख की बात यह कि उनके इस बेटे ने भी 35 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया।
आम को लेकर दिलचस्प किस्सा
गालिब के साथ आम को लेकर एक बहुत ही मजेदार किस्सा हुआ था। एक बार की बात है जब गालिब आम खा रहे थे और उन्होंने आम खाकर उसका छिलका फेंक दिया था। जहां गालिब ने आम का छिलका फेंका था वहां से एक आदमी अपने गधे के साथ गुजरा। उस आदमी के गधे ने आम के छिलके को सूघां और सूंघ कर छोड़ दिया। इस पर गधे के मालिक ने गालिब पर तंज कसते हुए कहा कि देखो ' गधे भी आम नहीं खाते ' इस पर गालिब हाजिर जवाब देते हुए कहते हैं कि 'गधे ही आम नहीं खाते'।