संगीत की दुनिया को मोहम्मद रफी के बिना देखना बेहद कठिन है। उनकी सुरीली और भावुक आवाज के आज भी लाखों दीवाने है।
24 Dec, 2022 11:22 AMनई दिल्ली/टीम डिजिटल। संगीत की दुनिया की मोहम्म्द रफी के बिना कल्पना करना भी बहुत मुश्किल है। उनकी सुरीली और जादुई आवाज के आज भी लाखों दीवानें है। बॉलीवुड में रफी साहब के गाए हुए गानों ने अपनी एक अलग ही पहचान और मुकाम हासिल किया है। दिवंगत गायक की जादुई आवाज हर किसी का मन मोह लेती है। आज उनके जन्मदिन के मौके पर हम आपको उनके जीवन के कुछ अनसुने किस्से बताने जा रहे हैं
सुरों के सरताज मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 हुआ। रफी साहब ने लगभग हर विषय से जुड़े हुए गाने गाए। एक मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक रफी साहब ने करीब 26 हजार गीतों को रिकॉर्ड किया है। रफी साहब की बचपन से ही गायिकी में रुचि हुआ करती थी। उनका स्वभाव बहुत शांत और सरल था। रफी साहब अपने गांव में फकीरों की नकल करके गाना गाया करते थे, जिसके बाद धीरे-धीरे वे गाना सीख गए।
रफी के बड़े भाई की एक नाई की दुकान हुआ करती थी, जहां घंटो बैठकर रफी साहब फकीरों को देखकर गीतों को गाना सीखते थे। वे लोगों को अपने गीत बड़े ही चाव से गाकर सुनाया करते थे। रफी साहब ने उस्ताद अब्दुल वाहिद से संगीत की शिक्षा ली। जहां से संगीत के मूल ज्ञान की प्राप्ति हुई।
एक बार रफी साहब को कहीं से पता चला कि सहगल जी ऑल इंडिया के मंच पर गाना गाने वाले हैं, तो वे भी सहगल साहब को सुनने उस कार्यक्रम में पहुंच गए। लेकिन प्रोग्राम में किसी कारण बिजली चली गई और सहगल जी ने गाने गाने से मना कर दिया, जिसके बाद रफी साहब ने सहगल जी की जगह गाना गाया। उस समय रफी साहब महज 13 साल के थे। रफी साहब ने अपनी आवाज का ऐसा जादू चलाया कि सबके होश उड़े गए।
20 साल की उम्र में रफी साहब मुबंई पहुंचे, जिसके बाद उन्होंने अपना पहला गाना पंजाबी फिल्म 'गुल बलोच' में गाया। इसके दो साल बाद हिंदी फिल्म 'अनमोल घड़ी' में रफी जी ने अपना पहला हिंदी गाना 'तेरा खिलौना टूटा' गाया। इस गाने के बाद रफी साहब की सफलता का शानदार सफर शुरू हुआ। उन्होंने शहीद, दुलारी, बैजू बावरा जैसी फिल्मों में गीत गाकर धूम मचा दी। संगीत के इस जादूगर ने 31 जुलाई 1980 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। बेशक आज वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा गाये गए गानों के जरिए वो हमेशा इस दुनिया में अमर रहेंगें।